अनमिट परछाईं | पुष्पिता अवस्थी
अनमिट परछाईं | पुष्पिता अवस्थी

अनमिट परछाईं | पुष्पिता अवस्थी

अनमिट परछाईं | पुष्पिता अवस्थी

सूर्य को
सौंप देती हूँ तुम्हारा ताप

नदी को
चढ़ा देती हूँ तुम्हारी शीतलता
हवाओं को
सौंप देती हूँ तुम्हारा वसंत
फूलों को
दे आती हूँ तुम्हारा अधर वर्ण
वृक्षों को
तुम्हारे स्पर्श की ऊँचाई
धरती को
तुम्हारा सोंधापन
प्रकृति को
समर्पित कर आती हूँ तुम्हारी साँसों की अनुगूँज
वाटिका में
लगा आती हूँ तुम्हारे विश्वास का अक्षय वट
तुम्हारी छवि से
लेती हूँ अपने लिए अनमिट परछाईं
जो तुम्हारे प्राण से
मेरे प्राणों में
चुपचाप कहने आती है
तुम्हारी भोली अनजी आकांक्षाएँ
तुम्हारे दिन का एकांत एकालाप
तुम्हारी रातों का एकाकी करुण विलाप
मंदिर की मूर्ति में
दे आती हूँ तुम्हारी आस्था
ईश्वर में
ईश्वरत्व की शक्ति भर पवित्रता
तुमसे मिलने के बाद

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