अमर प्रेम का क्षण | विश्वनाथ-प्रसाद-तिवारी
अमर प्रेम का क्षण | विश्वनाथ-प्रसाद-तिवारी

अमर प्रेम का क्षण | विश्वनाथ-प्रसाद-तिवारी

अमर प्रेम का क्षण | विश्वनाथ-प्रसाद-तिवारी

कुछ भी नहीं था बाहर
सारा ब्रह्मांड सिमट आया था
शरीर में

कुछ भी नहीं था भीतर
सारी चेतना उड़ गई थी
अंतरिक्ष में

कौन-सा क्षण था वह
हमारे अमर प्रेम का
जिसका नहीं किया हमने
अनुभव।

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