अकेले में तुम्हारी उपस्थिति | निशांत

अकेले में तुम्हारी उपस्थिति | निशांत

बियाबाँ में
एक पेड़ खिंचता है

समुद्र में एक डोंगी

भीड़ में तुम

अकेले में
तुम्हारी उपस्थिति।

See also  रामदुलारी | जितेंद्र श्रीवास्तव | हिंदी कविता