अभिसार | अरुण देव

अभिसार | अरुण देव

वहाँ मुझे एक नदी मिली धीरे धीरे बहती हुई
एक वृक्ष खूब हर भरा
अजाने पक्षिओं की चहचहाहट
खूब रसीले फल
एक फूल अपने ही मद में पसीजता हुआ

एक भौरे की इच्छा है कि वह रहे तुम्हारी पंखुड़ियों में
शव होने तक

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