आमची मुंबई | हरियश राय
आमची मुंबई | हरियश राय

आमची मुंबई | हरियश राय – Aamachi Mumbai

आमची मुंबई | हरियश राय

‘लीजिए साहब आपके सपनों का घर।’खुला और हवादार और ऊपर आकाश और नीचे गार्डन बालकनी में खड़े जो जाइए तो मुंबई की बारिश का लुत्फ उठाइए।’ अंसार ने बड़े से फ्लैट का दरवाजा खोलते हुए कहा।

तीस पैंतीस साल की उम्र रही होगी अंसार की। चेहरा साँवला बालों में मेहँदी आँखें छोटी जो ग्राहक की इच्‍छाओं को भाँप लें। घरों की दलाली का काम था उसका। चतुराई का भाव चेहरे से साफ झलकता था। नेट से विकास कुमार ने इसका नंबर लिया था। उसने कई फ्लैट दिखाए थे उनको लेकिन कोई पसंद नहीं आया था।

विकास कुमार ने देखा कि फ्लैट वाकई काफी बड़ा था। बड़ा सा हॉल, हॉल के आखिर में बड़ी सी बालकनी। हाल में सोफा, टेलीविजन, डायनिंग टेबल टेलीफोन, दो कमरे, कमरों में ए.सी., डबल बैड, अल्‍मारियाँ, वाशिंग मशीन, फ्रिज, किचन, किचन में गैस पाइप्‍लाइन, माइक्रोवेव, बाथरूम, बाथरूम में शावर, नहाने के लिए टब। छत से लटकते झूमर, पेंट्स के रंगों से मिलते जुलते खिड़कियों और दरवाजों के परदे सब मिलकर फ्लैट में चार चाँद लगा रहे थे। सुविधाओं का सारा सामान वहाँ मौजूद था। हाँ दीवारों का रंग रोगन जरूर हल्का हो गया था जिसे फिर से कराने के लिए कहा था। फ्लैट को देखकर उन्हें लग रहा था कि अब उनकी तलाश खत्म हो रही है। ऐसे ही किसी फ्लैट की तलाश वह कर रहे थे। यह इलाका भी पसंद आया था उन्हें। बहुत बड़ी सोसायटी थी। सोसायटी के बीचोंबीच में बड़ा सा गार्डन, स्‍वीमिंग पूल। गार्ड, कार पार्किग, सब कुछ था वहाँ।

लगभग एक माह से वह फ्लैट ढूँढ़ रहे थे। दोस्तों ने, जानकारों ने और उनके ऑफिस में काम करने वाले अंकुश दत्‍तात्रय शिंदे ने कई फ्लैट उनको दिखाए। अंकुश दत्‍तात्रय शिंदे ब्रोकर का काम भी करता था। ऑफिस में आने वाले हर नए आदमी को वही फ्लैट दिखाता था। लोग उस पर बहुत यकीन करते थे। लेकिन विकास कुमार को उसका दिखाया हुआ कोई भी फ्लैट पसंद नहीं आया। कोई बहुत छोटा था दड़बे की तरह। किसी का रास्ता बहुत खराब था, कहीं पानी नहीं। तो किसी फ्लैट के सामने बरसात में पानी जमा हो जाता था तो किसी का किराया बहुत ज्यादा था। फिर वे फ्लैट ऑफिस से बहुत दूर थे। थक गए थे वे फ्लैट देखते-देखते। शिंदे चाहता था कि विकास कुमार को उसका दिखाया हुआ फ्लैट ही पसंद आए।

विकास कुमार ने महसूस किया था कि मुंबई में सभी फ्लैटों पर दलालों का कब्जा था। उनकी मर्जी के बिना किसी को घर नहीं मिल सकता है। एक फ्लैट दिखाने में कई दलाल लगे हुए थे। जोंक की तरह चिपटे हुए थे हर फ्लैट से। हर आदमी उन्हें ठगना चाहता था। वे जानते हुए भी कि वे ठगे जा रहे हैं। वे ठगे जाने के लिए बाध्य हो गए थे। मुंबई में फ्लैट किराए पर लेने का रास्ता इन दलालों के गलियारों के बीच में से ही होकर निकलता था।

फ्लैट खोजने से पहले उन्हें हिदायत दे दी गई थी मुंबई में फ्लैट लेना हो तो दो बातों का खास ध्यान रखना। जिस किसी भी सोसायटी में फ्लैट लो वहाँ का किराया भले ही थोड़ा ज्यादा हो। पर वहाँ बरसात में पानी न भरता हों नहीं तो बहुत मुश्किल हो जाएगी। और दूसरा फ्लैट ऑफिस के जितना पास हो सके उतना पास लेना नहीं तो घर और ऑफिस के बीच कोल्हू के बैल बनकर रह जाओगे और आने जाने में ही प्राण पखेरू हो जाएँगे। चाहे लोकल से जाओ या चाहे कार से।

यह फ्लैट उनकी इन शर्तों पर खरा उतरता था। कई दिनों की भटकन के बाद यह फ्लैट उन्हें पसंद आया था। ऑफिस से एकदम पास था।

उन्होंने किराया वगैरह सब तय कर लिया था। बात को पक्का करने के लिए उन्होंने मकान मालिक का एडवांस किराया भी दे दिया था। अंसार को भी उसका कमीशन उन्होंने दे दिया था। केवल इतना कहा था कि मकान मालिक से कहना कि वह फ्लैट का रंग रोगन दुबारा करवा दे ताकि फ्लैट और भी अच्छा लगे। मकान मालिक उनकी यह शर्त मान गया था।

अगले दिन ऑफिस में अंकुश दत्‍तात्रय शिंदे ने उनसे कहा। ‘आज शाम मेरे साथ चलिए तीन चार घर दिखाऊँगा। उनमें से कोई न कोई घर आपको जरूर पसंद आएगा।’

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‘पर मुझे तो घर मिल गया…’ विकास कुमार के चेहरे पर विजय का भाव था।

‘मिल गया! कहाँ मिला…? शिंदे उनकी बात सुनकर हक्‍का बक्‍का रह गया उसे उम्मीद नहीं थी कि इस ऑफिस में बिना उसकी मदद के भी कोई घर ढूँढ़ सकता है।

‘साकीनाका में ऑफिस के एकदम पास है।’ विकास कुमार ने बताया।

‘साकीनाका में…’शिंदे चौंका।

‘क्यों… इसमें हैरानी की क्या बात है… साकीनाका क्या अच्छी जगह नहीं है।’विकास कुमार ने शिंदे की हैरानी पर सवालिया निशान लगाया।

‘नहीं। अच्छी जगह तो है। बहुत अच्छी जगह है। लेकिन…’वह कुछ कहते कहते रुक गया।

लेकिन… क्या…’विकास कुमार ने पूछा।

‘आपको मुंबई के फ्लैटों के बारे में कुछ पता नहीं है। बहुत पेंच है यहाँ फ्लैट में और कालोनियों में।’शिंदे ने गंभीरता से कहा।

‘क्या पेंच है।’विकास कुमार की उत्सुकता बढ़ गई।

‘वो जब आप रहने लगोगे, तब आपको पता चलेगा।’ अच्छा, छोड़ो यह सब। कौन सी सोसायटी है साकीनाका में। मैं तो हर सोसायटी को जानता हूँ।’शिंदे ने अपने ज्ञान का परिचय दिया।

‘आम्रकुंज में… साकीनाका चौराहे से थोड़ी ही दूर है…’विकास कुमार ने गर्व से जवाब दिया।

‘आम्रकुंजमें… आप और आम्र कुंज में।’ शिंदे ने हैरानी से कहा।

‘क्यों? वहाँ क्या है, आठवीं मंजिल में फ्लैट है। ए.सी., टी.वी., फ्रिज वगैरह सब है वहाँ। क्या मैं वहाँ नहीं रह सकता। विकास कुमार ने सहजता से जवाब दिया।

‘आप ने सोसायटी को अच्छी तरह देख तो लिया था। जान लिया था वहाँ कौन लोग रहते है।’ शिंदे की हैरानी बढ़ती जा रही थी।

‘क्यों… इसमें जानना और देखना क्या है। अच्छी सोसायटी है। खुली और हवादार। अच्छे लोग रहते हैं काम धंधे वाले और फ्लैट एकदम बढ़िया है ऑफिस के पास। किराया भी ठीक है। पानी और बिजली की कोई दिक्कत नहीं है; सोसायटी के बाहर चौबीस घंटे सिक्‍यूरिटी गार्ड रहते हैं। बरसात में पानी भी नहीं भरता। बाजार भी एकदम पास है और क्या देखना है।’ उन्होंने विस्तार से बताया।

‘तो फिर आपने सोसायटी ठीक से नहीं देखी। शिंदे ने ताना कसते हुए कहा।

तो फिर तुम्‍ही बताओ कैसे देखी जाए सोसायटी और कैसे देखा जाए घर।’ विकास कुमार ने त्‍योरियाँ चढ़ाते हुए कहा।

‘जो मैं कहना चाह रहा हूँ, आप समझ नहीं रहे। मैं आपको इससे अच्छी सोसायटी में घर दिला देता।’ शिंदे ने कहा।

‘पर जिस सोसायटी में आप घर दिलाना चाहते है, वह सोसायटी ऑफिस से बीस किलोमीटर दूर है और आप क्या चाहते है कि मैं मुंबई में रोज बीस और बीस किलोमीटर का सफर तय करूँ और वह भी कार से। आप तो केवल अपना फायदा देख रहें हैं’विकास कुमार ने थोड़ा गुस्से में कहा।

‘मैं सिर्फ अपना फायदा नहीं आपका फायदा भी देख रहा हूँ। आप पूरी तरह सिक्‍योर है वहाँ?’शिंदे ने एक सवाल उनसे पूछा।

‘आप को क्यों लगा कि मैं वहाँ सिक्‍योर नहीं हूँ।’विकास कुमार ने उसके सवाल के जवाब में एक सवाल और पूछ लिया।

‘नहीं है वहाँ आप सिक्‍योर, आम्र कुंज में। वह इलाका सेफ नहीं है।’शिंदे ने ‘सेफ’पर जोर दिया।

‘अरे कैसे कह सकते है आप वह इलाका सेफ नहीं है और मैं आम्रकुंज में सिक्‍योर नहीं हूँ।’विकास कुमार ने थोड़ा आवेश में कहा।

‘चलिए आप मेरे साथ, मैं बताता हूँ कि आम्रकुंज आपके लिए सेफ नहीं है।’शिंदे ने चुनौती भरे स्वर में कहा।

‘उनकी समझ में नहीं आया कि शिंदे किस आधार पर कह रहा है कि आम्रकुंज सोसायटी सेफ नहीं है। यह तो वह जानते थे कि शिंदे मकानों को किराए पर चढ़ाने का धंधा करता है। उसकी कोशिश यही रहती है इस ऑफिस में जो भी आए, उसी के मार्फत ही घर किराए पर लें। उन्होंने समझना चाहा कि आम्रकुंज उनके लिए क्यों सेफ नहीं है।’

‘तो आप बताओ कि कैसे सेफ नहीं है।’विकास कुमार ने पूछा।

‘यह मैं आपको यहाँ नहीं बता सकता। आप कल मेरे साथ चलिए मैं आपको बताऊँगा कि आम्रकुंज आपके लिए सेफ नहीं है। यहाँ में जो कुछ भी कहूँगा वह आपको समझ में नहीं आएगा।’ शिंदे ने उन्हें समझाने के अंदाज में कहा।

विकास कुमार शिंदे से समझ लेना चाहते थे कि आम्रकुंज उनके लिए सेफ क्यों नहीं है।

अगले दिन अंकुश दत्‍तात्रय शिंदे उनको साकीनाका के इलाके में ले गया जहाँ उनकी सोसायटी थी। शाम के करीब पाँच बजे थे।

आम्रकुंज के पास पहुँचते ही अंकुश दत्‍तात्रय शिंदे ने आते जाते लोगों की तरफ इशारा करते हुए कहा, ‘देखा आपने…’

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‘क्या…।’उनकी समझ में नहीं आया कि शिंदे उन्हें क्या दिखाना चाहता है।

‘यहाँ के रहने वाले सब मुसलमान है। यहाँ मुसलमान रहते है।’शिंदे ने इस तरह कहा जैसे वह किसी रहस्य से पर्दा उठा रहा हो।

‘तो इससे क्या हुआ?’विकास कुमार ने सहजता से कहा।

‘अभी तो कुछ नहीं हुआ… पर कभी भी हो सकता है। आपने जिस सोसायटी में फ्लैट लिया है वह मुस्लिम सोसायटी है।’शिंदे ने उनके ज्ञान में इजाफा किया।

मुस्लिम सोसायटी…। हैरान रह गए विकास कुमार।

‘जी हाँ, आइए… मैं आपको दिखाता हूँ।’

कहकर वह उनको आम्रकुंज के गेट के अंदर ले गया। सोसायटी का गार्ड शिंदे को जानता था इसलिए उसने खड़े होकर सलाम किया। गेट के अंदर सोसायटी के अहाते के बैंचों में कुछ औरतें बैठी हुई थी।

शिंदे ने उनकी तरफ इशारा करते हुए कहा, ‘यह देखिए सब मुस्लिम औरतें है। वो सामने से जो महाशय आ रहे हैं उनका पहनावा देखिए, उनकी दाढ़ी देखिए। सब मुसलमान रहते है इस सोसायटी में।

‘और दिखाता हूँ, आइए। कहकर शिंदे विकास कुमार को सोसायटी के बी ब्‍लाक की लिफ्ट के पास ले गए। वहाँ पर एक बहुत बड़ा सा बोर्ड लगा था जिस पर रहने वालों के नाम लिखे हुए थे। शिंदे ने बोर्ड की तरफ इशारा करते हुए कहा, ‘यह देखिए आपका फ्लैट है 803 ; देखिए 802 में कौन रहता है – अंसार अहमद। 801 में कौन रहता है – शकील सिद्दीकी, 804 में देखिए – अमीना पठान। उस फ्लोर में आप अकेले हिंदू…। और भी देखिए।’

यह सब बताकर शिंदे एक विजेता की तरह विकास कुमार की ओर देखने लगा।

विकास कुमार ने बोर्ड को गौर से देखा कि वाकई सब मुस्लिम ही वहाँ रहते थे। बोर्ड पर अधिकांश नाम मुस्लिम थे। पठान, अहमद, सिद्धकी, हुसैन, शेख जैसे नामों से बोर्ड भरा हुआ था। बीच बीच में कहीं कहीं पारसी नाम भी थे।

घबरा गए विकास कुमार। पाँवों के नीचे से जमीन निकल गई। यह पहले उन्हें क्यों नहीं दिखाई दिया। उन्हें इस तरह गुमसुम होते देख अंकुश दत्‍तात्रय शिंदे ने कहा, ‘आपको पता है कूर्ला से सटा हुआ इलाका है; मुसलिमों की घनी आबादी वाला इलाका। चारों तरफ मसजिदें ही मसजिदें है। कल को कुछ हुआ तो आपको भागने का भी वक्त नहीं मिलेगा। आठवें फ्लोर में आपने घर पसंद किया है।”

और यह सुनिए अजान। शिंदे ने दूर से आती अजान की आवाज की ओर इशारा करते हुए कहा।’यहाँ रहेगें तो पाँचों वक्त आपको अजान सुनाई देगी।’

अंकुश दत्‍तात्रय शिंदे की बातें सुनकर सन्न रह गए विकास कुमार। थोड़ी देर गुमसुम रहे। कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाए।

‘अब क्या किया जाए, मैंने तो घर पक्का कर दिया है। एक माह का किराया भी दे दिया है।” विकास कुमार घबरा गए थे।

‘हो सके तो किराया वापस ले लो, मैं आपको अपनी सोसायटी में घर दिला दूँगा। यहाँ मत रहिए।’ अंकुश दत्‍तात्रय शिंदे ने सलाह दी।

शिंदे को लग गया था कि इस बार तीर निशाने पर लगा है यदि विकास कुमार उसकी सोसायटी में फ्लैट ले लेता है तो उसका कमीशन पक्का।

‘पर शायद वो किराया वापस न करें। विकास कुमार ने कुछ सोचते हुए कहा।

“बात तो करके देखें…’अंकुश दत्‍तात्रय शिंदे ने उनका हौसला बढ़ाया।

अजीब दुविधा में फँस गए थे विकास कुमार। उन्हें इसका अंदाजा क्यों नहीं हुआ। हालाँकि फ्लैट के गेट पर 786 लिखा देखा था। तब वे क्यों नहीं समझ सके। तब शायद फ्लैट की खूबसूरती में ही उनका मन अटक गया था। फिर सोचा वहाँ रहने में क्या हर्ज है। पर अगले ही पल इरादा त्याग दिया। किसी मुस्लिम सोसायटी में वह कैसे रह सकते हैं।

रात भर परेशान रहे। शिंदे की बातें रह-रह कर उनके जेहन में कौंधती रहीं। क्या करें… किराया वापस ले लें… मुस्लिम सोसायटी में रहें… कल को कुछ हो गया तो… माहौल का कुछ भरोसा है… कब बदल जाए… तो क्या उसी सँकरी ओर तंग सोसायटी में रहें… और रोज चालीस किलोमीटर का सफर तय करें…?

सुबह उठते ही पहुँच गए अंसार के पास। अंसार उन्हें देख कर चौंका। मन में कुछ आशंका हुई।

‘अरे विकास जी, क्या हुआ… धंधा शुरू होने से पहले।’उसने पूछा।

‘देखिए मुझे आम्रकुंज में नहीं रहना। आप कोई दूसरा फ्लैट दिखाए किसी हिंदू सोसायटी में। नहीं तो मेरा एडवांस किराया और डिपाजिट वापस करवा दीजिए।’

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‘क्यों… क्या हुआ…? अंसार उनकी बात सुनकर हैरान रह गया।

‘आपने मुझे बताया नहीं कि आम्रकुंज एक मुस्लिम सोसायटी है। वहाँ सभी मुसलमान रहते है।’ उन्होंने गुस्से में कहा।

‘क्या मतलब…?’अंसार ने भी गुस्‍से में कहा।

‘वहाँ सब मुसलमान रहते है…’ उनका गुस्सा बरकरार था।

‘तो इससे क्या फर्क पड़ता है।’ अंसार ने शालीनता से कहा।

‘क्यों, नहीं फर्क पड़ता। कल को कुछ हो गया तो आप आएँगे मुझे बचाने। आप तो अपना कमीशन लेकर एक तरफ खिसक जाएँगे। भुगतूँगा तो मैं ही। आप मेरा किराया और डिपाजिट वापस करवा दीजिए। मुझे नहीं रहना वहाँ।’विकास कुमार का गुस्सा बरकरार था।

अंसार को सारा माजरा समझते देर नहीं लगी।

‘आप किस दुनिया में रह रहे हैं विकास कुमार जी। वहाँ जो भी लोग रह रहे हैं। वह सब जाने-माने लोग है। उनकी इज्जत है। वहाँ रहने वाले ज्यादातर लोग मुंबई के अस्पतालों में डाक्टर हैं और लोगों का इलाज कर रहे हैं। मुंबई के ज्यादातर टैक्‍सी वाले मुस्लिम है जो बाहर से आने वालों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाते हैं। गणपति विसर्जन में बैंड और बाजा बजाने वाले मुस्लिम है। बहुत कड़ी मेहनत करते है ये लोग मुंबई को सँवारने में। इसी बिल्डिंग में एक हिंदू औरत रहती है जिसने एक मुसलमान से शादी की है। राहत नाम है उसका और इस बिल्डिंग में जितने भी बैचलर लड़के-लड़कियाँ हैं उससे खाने का डिब्बा मँगाते हैं। यहाँ मुंबई में इस तरह मत सोचो। यहाँ इस तरह की सोच की कोई जगह नहीं है।’इस तरह सोचोगे तो मुंबई में नहीं रह पाओगे।’अंसार ने उन्हें हकीकत से रूबरू कराया।

विकास कुमार चुप रहे। कोई जवाब नहीं सूझ रहा था उन्हें।

‘आप छोड़ दीजिए इस सोच को कि सामने वाला मुसलमान है तो इससे आप को खतरा है। किस तरह का खतरा हो सकता है आपको।’अंसार ने सवाल पूछा।

‘ठीक कहते है आप। खतरा आज नहीं है पर हालात कब बदल जाए। आपको तो पता ही है कि खतरा वहाँ रहने वालों से नहीं होता है। जो माहौल बनता है खतरा उससे होता है।’विकास कुमार ने कहा।

‘कोई माहौल नहीं बनने वाला। मुंबई में इस तरह का माहौल अब नहीं बनता। मुझे तो लगता है कि खतरा आप में ही है। आप सामने वाले को शेख, मोहम्‍मद, या मोमिन की तरह क्यों देखते हो। आपके पड़ोस में रहने वाला वह एक नामी गिरामी हार्ट स्‍पेशिस्‍लट है। उससे मिलने के लिए लोगों को टाइम लेना पढ़ता है और जिस टैक्‍सी से आप यहाँ आए है, उसे चलाने वाला मुस्लिम है। मुंबई में घरों में काम करने वाली बाइयाँ बंगाल से आई मुस्लिम औरतें हैं। मुंबई के जीवन में ये लोग रच बस गए है। अलग-अलग खेमे नहीं है यहाँ। क्या रफी साहब के गानों को इसलिए नहीं सुनेंगे कि वह एक मुस्लिम ने गाए है या क्या लता मंगेश्‍वर को हिंदू कहकर खारिज कर देंगे या क्या मुसलमान होने के नाते बिस्मिल्ला खाँ को खारिज कर देंगे। आदमियत को देखिए साहब, उनके हुनर को देखिए। मुंबई में रहना हो तो इस सोच को बदल दीजिए। यह मुंबई है आमची मुंबई। अपने काम से काम रखती मुंबई; आज जमाना बदल गया है। बदलिए अपने नजरिए को। इस तरह सोचेंगे तो मुंबई का समंदर आपको किनारे ला पटकेगा। किसी फालतू कचरे की तरह।

कहकर अंसार चुप हो गया फिर थोड़ी देर बाद बोला, ‘अच्छी तरह सोच लीजिए आप… मुझे कोई दिक्‍क्‍त नहीं। मैं तो आपको किराया भी वापस करा दूँगा और सिक्‍यूरिटी भी। जब मकान मालिक को पता चलेगा कि आप ऐसी सोच रखते हैं तो वही आपको अपना घर देने से मना कर देगा।’

कहकर अंसार चुप हो गया।

विकास कुमार को कोई जवाब नहीं सूझा। धीरे से बोले, ‘सोच के बताता हूँ।’

लगातार दो दिन और दो रात इसी पर सोचते रहे; कभी अंकुश दत्‍तात्रय शिंदे की बातें जेहन में घूमती तो कभी अंसार की। समझ में नहीं आ रहा था कौन ठीक है।

अगले दिन अल्लसुबह उठकर अंसार को फोन किया और कहा, ‘मेरे नए घर में रंग रौगन हो गया हो तो बताएँ, मैं जल्द से जल्द वहाँ आना चाहूँगा।’

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