आकाश एक मसान है | कुमार मंगलम

आकाश एक मसान है | कुमार मंगलम

दोपहर 
धधकती चिता की अग्निशिखा

शाम 
बुझती चिता की राख में लिपटी आँच 
मंद-मंद

रात 
ठंडी पड़ गई आग 
चाँद हड्डियाँ चुनता है, जैसे कपालिक।

भोर 
चिता के राख से 
आग जिलाता है।

पौ फटता है 
चिता सुलगती है 
धुँआते आकाश में 
सूर्योदय हो रहा है।

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आकाश एक मसान है।