आदमी के नाम पर | जगदीश श्रीवास्तव
आदमी के नाम पर | जगदीश श्रीवास्तव
भूमिकाएँ बदली गईं
परिशिष्ट भी जोड़े गए
आदमी के नाम पर बस
हाशिए छोड़े गए।
तब घरों में कैद है इनसानियत
सुरंगों से निकल भी पाती नहीं है
बस्तियों में आग फैली है
धुएँ में सारा शहर ही खो गया है
हर तरफ आतंक के साए
खून में डूबी हुई है यह सदी
दहशतों में जा रहे हैं हम
जिल्द उखड़ी है किताबों की
जो बचे हैं पृष्ठ वो मोड़े गए।
खून मेहनत और पसीने पर
जब दमन का चक्र चलता है
अभावों में जी रही पीढ़ी
देखकर पत्थर पिघलता है
हादसे हर हादसे होते रहे
अभावों पर लोग जीते हैं
पीठ पर लादे हुए हैं घर
उम्र भर जो जहर पीते हैं
रोटियों के नाम पर गाली
हाथ में वल्गा सभी थामें
धँस गया है रथ पड़ावों में
हाथ में देकर कटोरा भीख का
इसलिए ही पाँव हैं तोड़े गए।