आदमी का चेहरा | कुँवर नारायण
आदमी का चेहरा | कुँवर नारायण

आदमी का चेहरा | कुँवर नारायण

आदमी का चेहरा | कुँवर नारायण

“कुली !” पुकारते ही
कोई मेरे अंदर चौंका। एक आदमी
आकर खड़ा हो गया मेरे पास

सामान सिर पर लादे
मेरे स्वाभिमान से दस कदम आगे
बढ़ने लगा वह
जो कितनी ही यात्राओं में
ढो चुका था मेरा सामान

मैंने उसके चेहरे से उसे
कभी नहीं पहचाना
केवल उस नंबर से जान 
जो उसकी लाल कमीज पर टँका होता

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आज जब अपना सामान खुद उठाया
एक आदमी का चेहरा याद आया

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