जवाब की कीमत | कृष्ण कुमार – Javab Ki Kimat

जवाब की कीमत | कृष्ण कुमार

एक विशालकाय हाथ उसे अपनी गर्दन की तरफ आता दिखा। साथ ही कानों में इतनी तेज आवाज आई जैसे कोई दैवी शक्ति आकाशवाणी कर रही हो :

”तुम्‍हारे विचार से इस सबके लिए दोषी कौन है?”

सवाल कुछ अटपटा था, मगर इतना ज्‍यादा सुना हुआ था कि उत्‍तर देते हुए उसे बहुत अड़चन नहीं हुई, उसने पूछने वाले की आवाज का मुकाबला करने के लिए चिल्‍लाकर कहा, ”मैं सोचता हूँ कि इस देश की जनता ही सबसे ज्‍यादा दोषी है। वह रूढ़िवादी, अंधविश्‍वासी, मूर्तिपूजक और मूर्ख है। उसी की वजह से देश प्रगति नहीं कर पा रहा है।”

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विशालकाय हाथ इस उत्‍तर से संतुष्‍ट नहीं हुआ। वह कुछ और पास आया और फिर से आवाज आई :

”प्रश्‍न तुमने सही ढंग से पकड़ा, मगर उत्‍तर देने में संकोच कर गए। तुम जो सोचते हो, निर्भय कहो।”

यह सुनते हुए उसने विशालकाय हाथ को अपनी गर्दन के बिल्‍कुल करीब महसूस किया। पहली बार शब्‍द गले में फंस गए। फिर दूसरी बार कोशिश करके वह बोला, ”अगर आप सही जानना चाहते हों तो सुनिए, इस सारी गड़बड़ी का दोष पूंजीपतियों को है जो अपने ऐशी-आराम के लिए लोगों का शोषण करते हैं। उनके कारण ही देश में कुछ नहीं हो पाता।”

विशालकाय हाथ इस उत्‍तर से भी संतुष्‍ट नहीं हुआ। वह अब गर्दन के ठीक सामने आ गया। साथ में आवाज आई :

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”तुम अब भी कुछ छिपा रहे हो। साफ बोलो कि इस अव्‍यवस्‍था का आधार कहाँ है?”

इस बार का प्रश्‍न अधिक पैना था। हालाँकि‍ विशालकाय हाथ गर्दन के बहुत पास आ जाने से उसकी घबराहट बढ़ गई थी, पर सवाल अपने मिजाज के अनुकूल होने से उत्‍तर गोया अपने-आप निकल गया, ”जी हाँ, इस सारी अव्‍यवस्‍था का दोष व्‍यवस्‍था को है, जो इस मुल्‍क की गंदी राजनीति के माध्‍यम से जिंदगी के छोटे-से-छोटे अंग में घुस गई है। व्‍यवस्‍था के पोषक ही इस देश के असली दुश्‍मन है।”

विशालकाय हाथ इस उत्‍तर से भी संतुष्‍ट नहीं हुआ। इस बार गर्दन को अपनी गिरफ्त में लेकर बोला :

”अब भी मौका है। तुम लगातार बात बनाने की कोशिश कर रहे हो। सच-सच बोलो कि तुम्‍हारी निगाह में बुरा कौन है?”

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हाथ की लपेट उसे अपनी गर्दन के पोर-पोर में महसूस हो रही थी। आसन्‍न मृत्‍यु से वह घबराया जरूर, पर साथ ही सटीक जवाब देने के लिए उसने विवशता का भी अनुभव किया। वह बोला, ”इस वक्‍त मेरे असली दुश्‍मन आप ही दिखते हैं। कहिए, यह सच…..”

वाक्‍य पूरा हो सकने से पहले विशालकाय हाथ उसका टेंटुआ दबा चुका था और हवा में अट्टहास के साथ सुनाई पड़ रहा था :

”हाँ, इस बार तुम बिल्‍कुल सच बोले।”

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