मलेरिया सबसे आम संक्रामक रोगों में से एक है और एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है। मलेरिया प्लाजमोडियम वाइवैक्स और प्लाजमोडियम फैल्सीफेरम वायरस परजीवी की वजह से होने वाला रोग है, जो संक्रमित मादा एनोलीज जाति के मच्छरों के काटने से फैलता है।
मलेरिया के लक्षण : ठंड, बुखार, और पसीना इसके लक्षण हैं, जो आमतौर पर काटे जाने के कुछ सप्ताह बाद प्रकट होते हैं। यह होना भी आम है: त्वचा का पीलापन, दिल की तेज़ धड़कन, सिरदर्द, या सुध-बुध खोना।
कुछ सरल बचाव के तरीके काफी मदद कर सकते है : ऐसे कपडे पहने जो आपकी पूरी शरीर को ढके। खतरनाक मच्छर आप के घर के कोनो में छुपे रह सकते है। रोज काला हिट स्प्रे करे आपके और आपके परिवार के सुरक्षा के लिए। सुनिश्चित करें कि आपके घर में या उसके आस-पास स्थिर पानी नहीं है। अपने आस-पास साफ़ सफाई आवश्यक रूप से कायम रखे। मच्छर दानी इस्तेमाल करें या मच्छर निवारक क्रीम, सरसों का तेल आदि इस्तेमाल करे।
उपचार –
आयुर्वेद – आयुर्वेद में मलेरिया को विषम ज्वर के श्रेणी में रखा जाता है। यदि बुखार हर तीसरे दिन आता है तो ये तृतीयक ज्वर है। चौथे दिन आने वाले बुखार को चतुर्थक ज्वर कहा जाता है।
इसके रोगी को गिलोय का रस पिलाने से आराम मिलता है। गिलोय ऐसी आयुर्वेदिक बेल है, जिसमें सभी प्रकार के बुखार विशेषकर मलेरिया रोगों से लड़ने के गुण होते हैं।
नीम या सप्तपर्ण पेड़ की छाल का काढ़ा बनाकर भी पीया जा सकता है। इसके लिए 10 ग्राम छाल को आधा गिलास पानी में 1/4 होने तक उबालें और छानकर गुनगुना पिएं। आयुर्वेद विशेषज्ञ मरीज की स्थिति के अनुसार कई तरह की वटी, गिलोय सत्व व ज्वर को हरने वाले रस भी देते हैं। इस तरह की दवाओं को सुबह व शाम हल्के गर्म पानी के साथ लेने से लाभ होता है।
टेस्ट – मलेरिया की जांच के लिए कई मलेरिया रैपिड एंटीजन टेस्ट भी उपलब्ध हैं। इन परीक्षणों में रक्त की एक बूंद लेकर 15-20 मिनट में ही परिणाम सामने आ जाते है।
मलेरिया के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवाओं का प्रकार रोग की गंभीरता और क्लोरोक्वाइन (chloroquine) प्रतिरोध की संभावना पर निर्भर करता है।