उजड़ते जा रहे हैं मेले
यहाँ पिपहिरी की आवाज नही
सुनाई पड़ती
बजते नही ढोल और मँजीरे
नट नही दिखाते
जादूगर दिल्ली की तरफ
चले गए हैं
मेले में बैठे दुकानदारों में
आ गई है क्रूरता
ग्राहकों के साथ अचानक बदल
गया है उनका व्यवहार
मेले में कोई बच्चा
रोटी बनाती हुई अपनी दादी के
हाथ जल जाने की चिंता में
नही खरीदता चिमटा
उनकी नजर खिलौने की बंदूक
पर होती है
धीरे धीरे वह असली बंदूक के
बारे में जानने लगता है
खरीद फरोख्त की जगह
बन गए हैं मेले
यहाँ उत्सव नहीं है
न है लोकगीतों की तान
लोकगायक अपनी आवाज बेचने
शहर कूच कर गए हैं
जिन मेलों को देखते हुए मैं
बड़ा हुआ, वहाँ स्त्रियों के बिकने
की सूचना है