कमीज
कमीज

आज आलमारी से मैंने
तुम्हारे पसंद की कमीज निकाली

उसके सारे बटन टूटे हुए थे

तुमने न जाने कहाँ रख दिया
मेरी जिंदगी का सुई धागा

बिना बटन की कमीज
जैसे बिना दाँत का कोई आदमी

मैं कहाँ जाऊँगा बाजार
कौन सिखाएगा मुझे कमीज में
बटन लगाने का हुनर

चलो इसको यूँ ही पहन लेता हूँ
जैसे मैंने तुम्हारे न होने के दुख को
पहन लिया है

READ  पाँच : उपलब्धि | अभिज्ञात

Leave a comment

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *