ऊँची 
विशाल 
हरी-भरी पहाड़ियों के 
चौड़े कंधे पर 
शरारती बच्चों की तरह 
लदे हुए हैं 
अगस्त के बादल

दूध से भरे 
भारी थन से 
या चाँदनी से लबालब कटोरे से 
छलक-छलक रहे हैं 
अगस्त के बादल

मेरे मन मस्तिष्क में 
तुम्हारी याद की तरह सघन 
और बरस जाने को आकुल 
आतुर 
घिर रहे हैं 
मन मिजाज पर 
अगस्त के बादल।

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