शैशव के सुंदर प्रभात का 
मैंने नव विकास देखा। 
यौवन की मादक लाली में 
जीवन का हुलास देखा।।

जग-झंझा-झकोर में 
आशा-लतिका का विलास देखा। 
आकांक्षा, उत्साह, प्रेम का 
क्रम-क्रम से प्रकाश देखा।।

जीवन में न निराशा मुझको 
कभी रुलाने को आई। 
जग झूठा है यह विरक्ति भी 
नहीं सिखाने को आई।।

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अरिदल की पहिचान कराने 
नहीं घृणा आने पाई। 
नहीं अशांति हृदय तक अपनी 
भीषणता लाने पाई।।