स्थगित होती हूँ 
ओ रात ! 
हमारे बीच अभी जो वक्त है 
फँसा 
चट्टान की तहों में जीवाश्म 
उसे छू 
सहला

यह जो हमारे बीच चटक उजला दिन है 
अपराधी सा 
बस के बोनट पर सफर करता 
पसीने में भीगता 
मुँह लटका उतरता 
गलत स्टॉप पर 
पछताता 
इसे छाया दे !

See also  रामायण

रक्त और धड़कन हो जा 
दाँत दिखा मुँह खोल 
मैले नाखून देख 
लेट जा बेधड़क 
फूला पेट ककड़ी टाँगें फैला क्षितिज में 
ओ रात ! 
खुल जा 
मत हिचक 
चहक बहक महक 
आदिम नाच की थिरकन सी 
लहक

चुप्पी हमारे बीच 
भूख की लत से परेशान 
दवाओं से नहीं टूटती 
नहीं आती वापस जंगली हँसी 
अड़ियल है अड़ियल 
जिनके दिन नहीं होते घर जैसे 
चाहती क्या उनसे हो 
ओ बेघर रात !

See also  प्रतिभाएँ अपनी ही आग में | अविनाश मिश्र