भूतनाथ | देवकीनंदन खत्री – Bhoothnath

भूतनाथ | देवकीनंदन खत्री

भूतनाथ बाबू देवकीनंदन खत्री का तिलस्मि उपन्यास है ! चंद्रकान्ता की कहानी चंद्रकान्ता संतति मे आगे बढ़ाई गयी है! और संतति के बाद उसी कहानी को भूतनाथ और उसके बाद रोहतास मठ के ज़रिए अंज़ाम तक पहुँचाया गया है! चंद्रकान्ता संतति मे एक रहस्मयी किरदार का आगमन् होता है जो पहले के सभी ऐयारो से तेज़ है सही काम करने के लिए ग़लत रास्ता अपनाने से नही चूकता ओर हमेशा इस कशमकश मे जीता रहता है की वह वास्तव मे किस चरित्र का है?

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ग़लत लोग जैसे दारोगा, शिवदत्त उसे अपने जैसा ग़लत और इन्द्रदेव उसे सही साबित करने मे लगे रहते है! चंद्रकान्ता संतति मे भूतनाथ का आगमन एक तुरुप के पत्ते की तरह होता है जो छलावे की तरह आता है ओर बाज़ी पलट के चला जाता है! भूतनाथ कान का कच्चा इंसान है जो सभी की बातो मे आ जाता है! कभी वो बुराई की मदद करता है चंद्रकान्ता संतति के पूरक के रूप मे भूतनाथ सीरीस लिखी गयी थी!

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ये 7 ज़िल्द का उपन्यास बाबू देवकीनंदन खत्री का महत्वआकांक्षी उपन्यास था जिसे वो पूरा नही कर सके! माना जाता है की अगर वो इसे पूरा कर पाते तो ये उपन्यास काल्पनिक उपन्यासो का सरताज होता! पर खत्री जी का इस उपन्यास को पूरा करने से पहले ही निधन हो गया! उनके बेटे दुर्गा प्रसाद खत्री ने इस उपन्यास को पूरा किया! पर बाबू देवकी नंदन खत्री की लेखनी की चमत्कृतता इनकी लेखनी मे नही थी फिर भी इन्होने इस कहानी पूरा किया! बाद मे दुर्गा प्रसाद जी ने रोहतास मठ नाम से इस विस्मयकारी शृंखला का समापन किया!

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भूतनाथ – Bhoothnath

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