अजान की तान 
गूँजती है 
भोर की गोधूलि में 
जब प्रकाश की किरणें 
प्रवेश करती हैं 
आसमान में 
नमाज के लिए 
पाँव मोड़ कर 
आधे बैठे बादलों में 
चिड़ियाएँ 
रात की नींद से उठकर 
चहचहाते हुए 
अपने पंख झटकती हैं 
अपने घोंसले से बाहर उड़ जाती हैं 
चंद्रमा के क्षीण वक्र 
के इर्द गिर्द झूलती हैं 
चंद्रमास की 
चौदहवीं रात के लिए 
जाप करती हुई 
प्रार्थनाएँ पड़ी हैं 
खुले हुए कोष्ठक में 
आकाश में 
लटकी हुई 
इस पल 
इस सुबह।

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