बहुत पहले बहुत सी बातें 
छूती थीं दिल रुलाती थीं आँखें

मोहल्ले के उस छोर पर पीपल के नीचे 
अक्सर बैठती उस बुढ़िया का निधन 
मोहल्ले में सनसनी फैलाता 
महीनों टिकी दोपहरी की गर्म हवा सा 
घरों के अंदर बाहर घूमता रहता था 
छूता था दिल रुलाता था आँखें

दादी की लंबी कहानी की यादें 
उड़ते घोड़ों और रोते राजा की बातें 
अब भी उन्हें सपने में वापस बुलाती हैं 
हाय! उनकी पोपली बोलों की चाशनी ललचाती है 
पढ़ाई के नाम पर एक काली पाती और गोरी माटी 
दुनिया के गणित भाषा और भूगोल बताती है 
शाम होते ही चिड़ियों का घेरा सा 
बच्चों का डेरा सा 
देर रात हो हो और हल्ला मचाता 
दादा और दादी की मीठी डाँट खाता 
अम्मा की गोद में छिप के सो जाता 
पर सुबह की भोर के संग आँख जो खुलती 
पाया हुआ सब कुछ ओझल हो जाता 
और रात का सपना बन आँखों में खो जाता 
लेकिन फिर भी दूर जाके भी दूर न जाता 
सच है बहुत पहले बहुत सी बातें 
छूती थीं दिल रुलाती थीं आँखें

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