मरी हुई आत्माएँ | विश्वनाथ-प्रसाद-तिवारी
मरी हुई आत्माएँ | विश्वनाथ-प्रसाद-तिवारी

मरी हुई आत्माएँ | विश्वनाथ-प्रसाद-तिवारी

मरी हुई आत्माएँ | विश्वनाथ-प्रसाद-तिवारी

मरी हुई आत्माएँ रात को निकल पड़ी हैं
सड़कें खाली करो
दरवाजे खोल दो
वे अपने प्रेमियों के पास जाएँगी
वे सिंहासनों पर बैठेंगी
वे ताजे फल खाएँगी
रोशनी की दमक तुम्हारी थी
अँधेरी रातें उनकी हैं।

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