रिश्ते | विमल चंद्र पांडेय

रिश्ते | विमल चंद्र पांडेय

रिश्तों की पतली दीवार पर उकड़ूँ बैठे हुए
मुझे अक्सर डर लगता है कि मैं फिसल कर गिरूँ
और नीचे एक पहाड़ जैसी रात हो
जिसे अपने सीने पर रख कर मर जाना पड़े

मेरी शादी में सूट पहनाने के बाद दिया जाने वाला शगुन
नहीं दे पाया मैं फूफाजी को
उनकी मौत दवाइयों की कमी से हुई हो या सेहतमंद खाने की कमी से
हमारे लिए अपने घर में मार्बल लगवाया जाना दुनिया का सबसे जरूरी काम था

See also  कविता के सपने

धीरे-धीरे सब कुछ खोते चले जाने के बाद
रोने का विकल्प हमारे लिए सबसे आसान हथियार बच रहा है
मेरे पास रिश्ते बचाने का कोई रास्ता बचा था
इसका पता चल रहा है रिश्ते खत्म होने के बाद

मेरी चिटि्ठयाँ आखिर क्यों लौट आ रही हैं हर बार
कौन सा पता लिखूँ गुड़िया
कि तुम मेरी पुरानी हैंडराईटिंग पहचान लो

See also  साँपों के पहरे | रमेश चंद्र पंत

रिश्तों को निभाना बहुत कठिन था और उनसे बचना भी काफी मुश्किल
तुम्हारे अस्तित्व को बिना किसी नाम के पहचानना
टूटे शीशे में अपना अक्स देखने जैसा था
प्रेम पर बहस में बुद्धिजीवियों के बीच बैठ
शरीर के आकर्षण के बरक्स सच्चे प्रेम का पक्ष लेकर
हिकारत की हँसी सहना उससे आसान था

See also  मकई के दाने का वजन