धन्यवाद | लीलाधर जगूड़ी

धन्यवाद | लीलाधर जगूड़ी

जाते हुए आती है एक याद
आते हुए भूल जाता हूँ
रात को कहाँ रहते हैं भिखारी
जंगल में अँधेरे में एकांत में
या किसी बहुत बड़े कुनबे में
रात को कहाँ रहते हैं भिखारी?
भिखारी कभी छिपना नहीं चाहते

भिखारी बच्‍चे
हमेशा रोशनी में रहते हैं
भीड़ भरे इलाकों में रहते हैं
झटक कर ध्‍यान खींचते हैं
ताकि लोग उन्‍हें देख सकें

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भिखारी
बच्‍चों को सड़कों पर छोड़ देते हैं
रेलवे स्‍टेशनों पर छोड़ देते हैं
ताकि ज्‍यादा से ज्‍यादा लोगों को
वे दिख सकें

भिखारी
सोते हुए भी अपने को नहीं ढँकते
ताकि निर्लज्‍ज दया आती रहे
सलज्‍ज लोगों को

भिखारी दया और दान का गुण
बचाये हुए हैं पूरी मानवता में
भिखारियों को दिया जाय
या मानवता को दिया जाय धन्‍यवाद।

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