वह | लीना मल्होत्रा राव

वह | लीना मल्होत्रा राव

वह अपने अधनंगे फूले पेट वाले बच्चे को उठाए 
मेरी कविता की पंक्तियों में चली आई 
और भूख के बिंब की तरह बैठ गई 
मैं जब भी कविता खोलती 
उसके आजू बाजू में बैठे शब्द मक्खियों की तरह उस पर भिनभिनाने लगते 
जिन्हें हाथ हिलाकर वह यदा कदा उड़ा देती। 
उस निर्जन कविता में 
उसकी दृष्टि 
हमारी नाकामी का शोर रचती 
जिससे मैं दूर भाग जाना चाहती 
किंतु अफसोस कविता गाड़ी नहीं थी जिसके शीशे चढ़ाकर उसे मेरी दुनिया से बेदखल किया जा सकता। 
वह आ गई थी 
और अपना हक माँग रही थी।

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