सखी कथा | लाल्टू
सखी कथा | लाल्टू
हर रोज बतियाती सलोनी सखी
हर रोज समझाती दीवानी सखी
गीतों में मनके पिरोती सखी
सपनों में पलकें भिगोती सखी
नाचती है गाती हठलाती सखी
सुबह सुबह आग में जल जाती सखी
पानी की आग है
या तेल की है आग
झुलसी है चमड़ी
या फन्दा या झाग
देखती हूँ आइने में खड़ी है सखी
सखी बन जाऊँ तो पूरी है सखी
न बतियाना समझाना, न मनके पिरोना
न गाना, इठलाना, न पलकें भिगोना
सखी मेरी सखी हाड़ माँस मूर्त्त
निगल गई दुनिया
निष्ठुर और धूर्त्त.
(पश्यन्ती – 2001)