हमारे बीच | लाल्टू
हमारे बीच | लाल्टू

हमारे बीच | लाल्टू

हमारे बीच | लाल्टू

जानती थी
कि कभी हमारी राहें दुबारा टकराएँगीं
चाहती थी
तुम्हें कविता में भूल जाऊँ
भूलती-भूलती भुलक्कड़ सी इस ओर आ बैठी
जहाँ तुम्हारी डगर को होना था.

यहाँ तुम्हारी यादें तक बूढ़ी हो गई हैं
इस मोड़ पर से गुज़रने में उन्हें लम्बा समय लगता है
उनमें नहीं चिलचिलाती धूप में जुलूस से निकलती
पसीने की गन्ध.

READ  पथ की पहचान | हरिवंशराय बच्चन

तुम्हारे लफ्ज़ थके हुए हैं
लम्बी लड़ाई लड़ कर सुस्ता रहे हैं
मैं अपनी ज़िद पर चली जा रही हूँ
चाहती हुई कि एकबार वापस बुला लो
कहीं कोई और नहीं तो हम दो ही उठाएँगे
कविताओं के पोस्टर.

मैं मुड़ कर भी नहीं देखती
कि तुम तब तक वहाँ खड़े हो
जब तक मैं ओझल नहीं होती.

READ  राह | केसरीनाथ त्रिपाठी

लौटकर अन्त में देखती हूँ
तुम्हारे हमारे बीच मौजूद है
एक कठोर गोल धरती का
उभरा हुआ सीना.

(पल-प्रतिपल – 2005)

Leave a comment

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *