यातनागृह, कैदी और अभिनय | राकेश रंजन

यातनागृह, कैदी और अभिनय | राकेश रंजन

वह एक यातनागृह था
जिसके सारे कैदी
सामूहिक अभिनय कर रहे थे
एक दुखांतक नाटक में

सबकी अपनी-अपनी भूमिकाएँ थीं
एक राजा बना था, कुछेक मंत्री-संत्री
अनेकानेक सिपाही, सिपहसालार
विदूषक, संत, अधिकारी, कहार
कवि, कलाकार
मुजरिम, फरियादी, काजी, जल्लाद…

See also  पहरे पर पिता

उनमें से ज्यादातर दर्शक बने थे
जो हर अदा, हर संवाद पर
हाथ उठा-उठाकर दे रहे थे दाद

वे सभी कैदी
अद्भुत अभिनेता थे सिद्ध
जिसका प्रमाण यह था
कि आपादमस्तक बेड़ियों से
जकड़े होने के बावजूद
तमाम अंग-संचालनों के दौरान
जरा भी खनकती नहीं थीं
उनकी बेड़ियाँ !

अद्भुत था उनका कौशल !
विद्रोह की भूमिकावाले कैदी
मुट्ठियाँ भाँज-भाँजकर
जताते थे विरोध
मगर उनके हाथों की बेड़ियाँ
रहती थीं बिलकुल खामोश !

See also  मुफलिसी में मुगालते | अविनाश मिश्र

पर कभी-कभार
दुर्भाग्य से
जब किसी की बेड़ियाँ खनक उठती थीं
तब उसे मरने का अभिनय
करना होता था
बाकी सब
उसे मारने का अभिनय करते थे
और दर्शक
यह कहने का अभिनय
कि खून, खून…