माइग्रेन | रति सक्सेना
माइग्रेन | रति सक्सेना
कोई कठफोड़वा मेरी कनपटी पर
पंजे गड़ाये
भेजे में ठुकठुका रहा है
नन्हें कीड़ों के साथ
उसकी चोंच में पैठती जा रही है
मेरी अपनी सोच
मेरे मोह और वेदनाएँ
यूँ तो इस कठफोड़वे के आने के दिन
निश्चित नहीं
फल की जगह इसे पसंद आते हैं
सूखे लकड़भेजे
और उनमें चोंच घुपा कर
विचारों की एंठ तक निकालना
मैं आँख बंद किये
इस ठुक ठक को अपनी
शिराओं में लीलती हुई
खुद कठफोड़वा में विलय
होती जा रही हूँ