चींटी के पर | रति सक्सेना
चींटी के पर | रति सक्सेना
उन्होंने कहा – चींटी के पर नहीं होते
फिर कहा – पर हों तो वह उड़ेगी नहीं
यदि उड़ान ही नहीं तो परों की व्यथा कैसी?
परों पर चींटी की मौत सवार है
मौत में उड़ान है
चींटी ने उड़ना शुरू कर दिया
नीली रोशनी की डोर थाम,
परों को दक्षिण दिशा की ओर झुकाए
वही शोर में सन्नाटे का भ्रम
पीली रोशनी की ओर
जिंदगी के विरुद्ध
उड़ान को अपनी देह की कोशिका में समेट
चींटी ने अगली पीढ़ी के लिये
उड़ान का बीज बो दिया