कंचों वाला बचपन | रजनी मोरवाल
कंचों वाला बचपन | रजनी मोरवाल

कंचों वाला बचपन | रजनी मोरवाल

कंचों वाला बचपन | रजनी मोरवाल

शहरीवन में बिछुड़ गया है कंचों वाला बचपन।

आँगन सिकुड़ा घर के अंदर आ पहुँची कॉलोनी,
बिन ब्याहे ही लौट रही सारी ऋतुएँ सागौनी,
मैदानों ने पहनी मीनारों की भारी अचकन।

चैनल के तारों की गड्डी अटकी है होर्डिंग में,
वाहन आवाजाही करते हर मौके पार्किंग में,
खेल-खिलौने लील गया अब ये कंक्रीटी गुलशन।

READ  चंदन गंध | रमानाथ अवस्थी

माँ की लोरी गुमसुम अँग्रेजी गाना भरमाए,
पिज्जा की रोटी पेप्सी की बोतल अब ललचाए,
हुआ विदेशी चूल्हा भी अब स्वाद बने हैं उलझन।

Leave a comment

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *