भीड़ से भागे हुओं ने | यश मालवीय
भीड़ से भागे हुओं ने | यश मालवीय
भीड़ से भागे हुओं ने
भीड़ कर दी
एक दुनिया कई हिस्सों में
कुतर ली
सिर्फ ऐसी और
तैसी में रहे
रहे होकर
जिंदगी भर असलहे
जब हुई जरूरत
आँख भर ली
रोशनी की आँख में
भरकर अँधेरा
आइनों में स्वयं को
घूरा तरेरा
वक्त ने हर होंठ पर
आलपिन धर दी
उम्र बीती बात करना
नहीं आया
था कहीं का गीत
जाकर कहीं गाया
दूसरों ने खबर ली
अपनी खबर दी