यह स्वप्न यथार्थ भी है | मोहन सगोरिया

यह स्वप्न यथार्थ भी है | मोहन सगोरिया

यह एक गहरी नींद का दुःस्वप्न है कि बरसात
सारे शहर पर हो रही है और बारूद के ढेर पर नहीं

गहरी नींद का यह स्वप्न यथार्थ भी है और कल्पना भी
कि मूसलाधार बारिश में बारूद का ढेर तप रहा रेगिस्तान-सा

See also  बारिश | हरे प्रकाश उपाध्याय

काल के विरुद्ध अभी-अभी कुछ बच्चे
ढेर पर आ खड़े हुए हैं भीगे हुए

इस समय आसमान से फूल नहीं बरस रहे
यकीनन सारे देवता गहरी नींद में हैं।