लोहा | मुकेश कुमार
लोहा | मुकेश कुमार
अगर लोहा हो
तो साथ रहो आग के
तपोगे, गलोगे
कभी हँसिया,
हथौड़ा
या हथियार में ढलोगे
जो पड़े रहे कहीं भी
तो लगेगी जंग
बदल जाएँगे रंग-ढंग
कबाड़ कहलाओगे
कबाड़ के भाव ही आँके जाओगे।
लोहा | मुकेश कुमार
अगर लोहा हो
तो साथ रहो आग के
तपोगे, गलोगे
कभी हँसिया,
हथौड़ा
या हथियार में ढलोगे
जो पड़े रहे कहीं भी
तो लगेगी जंग
बदल जाएँगे रंग-ढंग
कबाड़ कहलाओगे
कबाड़ के भाव ही आँके जाओगे।