झाड़ियाँ | मारीना त्स्वेतायेवा
झाड़ियाँ | मारीना त्स्वेतायेवा

झाड़ियाँ | मारीना त्स्वेतायेवा

झाड़ियाँ | मारीना त्स्वेतायेवा

झाड़ियों में से मुझे आवाज न दो
ओ, इंसानी की दुनिया!
झाड़ियों में से मुझे दो ऐसी खामोशी
जैसी रहती है मौत और भाषा के बीच।

ऐसी खामोशी जिसका नहीं कोई नाम
या है नाम हजारों – हजार तरह के
गहरी और अमिट खामोशी
खामोशी हमारी अमर्त्‍य कविताओं की

READ  अधिनायक वंदना | गोरख पाण्डेय

खामोशी पुराने उद्यानों के धुँधलेपन की
खामोशी नये संगीत की अस्‍पष्‍टता की
खामोशी तोतली बोली के अबुझपन की
खामोशी फाउस्‍ट के दूसरे भाग के जटिलता की
ऐसी खामोशी जो होती है
सबसे पहले और सब कुछ के बाद।
मंच पर आते असंख्‍य लोगों के शोर
कानों पर प्रहार करते शोर

READ  इंतजार | ज्ञानेन्द्रपति

अपने भीतर सब कुछ गड्डमड्ड करते शोर
हर तरह के शोर के बीच मुझे दो खामोशी।

जैसे पूरब के सब घड़े
रख दिये गये हों पहाड़ी के मस्‍तक पर
मुझे दो ऐसी खामोशी
जो व्‍यक्‍त न हो पाये किसी भी तरह पूरी-की-पूरी।

Leave a comment

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *