जेबें | मंजूषा मन
जेबें | मंजूषा मन
धोने से पहले
टटोली नहीं गईं
जेबें…
कभी किसी जेब में
मोड़-माड़कर
रख दी थी एक दिन
जिंदगी…
सहसा कौंधी वो याद
अपनी किसी जेब में
रख भूले हैं
जिंदगी के पुर्जे…
सुख के नोट
खुशियों की रेजगारी…
जो टटोली तो पाया
वक्त की धार
और आँसुओं की मार से
जिंदगी बदल गई
लुगदी में…
नोट कट गए अपने मोड़ों से
और रेजगारी
खनखना कर कहती पाई
खत्म नहीं हुआ अभी सब
कुछ है तो बचा है
अब भी जीने को…