चोर | बोधिसत्व
चोर | बोधिसत्व

चोर | बोधिसत्व

चोर | बोधिसत्व

मैं दूसरों की बनाई दुनिया में रहा
सड़के जिन पर मैं चला
चप्पलें जो मैंने पहनीं
रोटियाँ जो मैंने खाईं
सब थीं दूसरों की बनाईं ।

झंडे जो मैंने उठाए
नारे जो मैंने लगाए
गीत जो मैंने गाए
सब थे दूसरों के बनाए।

किताबें जौ मैंने पढ़ीं
थी सब दूसरों की गढ़ी।

READ  बँगले में | प्रेमशंकर शुक्ला | हिंदी कविता

मैं तो बस चोर की तरह
चुराता रहा दूसरों का किया

मैंने किया क्या
जीवन जिया क्या ?

Leave a comment

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *