नाव | बेल्‍ला अख्‍मादूलिना
नाव | बेल्‍ला अख्‍मादूलिना

नाव | बेल्‍ला अख्‍मादूलिना

नाव | बेल्‍ला अख्‍मादूलिना

बरामदे से बाहर जब कदम रखती हूँ मैं,
घनी और गीली महसूस होती है घास।
मैं उठाती हूँ एक पराये बच्‍चे को
जो पड़ा होता है अपने पिता पर।
उठाये रखती हूँ मैं ऊपर उसे
बेचैन मैं कहती हूँ उसे : ”देख तो,
कैसी दिखाई दे रही है नाव
भीतर से एकदम नीली!

READ  भटका हुआ कारवाँ | गिरिजा कुमार माथुर

मेज की दराजों में से
हम निकालेंगे अखरोट और मिश्री की डलियाँ,
देखेंगे किस तरह की नदियाँ
बहती हैं हमारी पृथ्‍वी पर।

है एक ऐसी भी हँसोड़ नदी
बहती है वह दूर, बहुत दूर,
अवश्‍य ही उसके भीतर
मिला है पानी और दूध।

कम नहीं है उसकी गहराइयों में
शक्‍कर की तरह मीठी-मीठी मछलियाँ।
पर हमें अपलक देखती रहती है तेरी माँ
हम पर से तनिक भी हटाती नहीं
अपनी आँखें।

READ  हृदय ढूँढ़ता है प्रेम के भूले पासवर्ड | नीरजा हेमेंद्र

संभव नहीं हमारे लिए भाग निकलना यहाँ से,
देख नहीं सकेंगे वे सब नदियाँ।
ब्‍यालू के बाद बेटे को
सोने के लिए सख़्ती से लिटाती है माँ।

खिड़कियों! बंद हो जाना सट कर एक साथ,
बत्तियों! तुम भी अब जलना नहीं।
आने देना बच्‍चे के सपनों में
भीतर से नीली उस नाव को।

READ  वही नहीं लिख पाया

Leave a comment

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *