इसी शहर में खोया | ब्रिज नाथ श्रीवास्तव
इसी शहर में खोया | ब्रिज नाथ श्रीवास्तव

इसी शहर में खोया | ब्रिज नाथ श्रीवास्तव

इसी शहर में खोया | ब्रिज नाथ श्रीवास्तव

ओ भाई !
दिखा तुम्हें क्या गाँव हमारा
           इसी शहर में खोया।

यही गाँव था, जिसको घेरे
हरी-भरी अमराई थी
पश्चिम में कुछ ताल तलैया
पूरब में फुलवाई थी

पुरखों ने
द्वारे की निमिया के नीचे
           नींद चैन की सोया।

READ  नाम और पता

इसी गाँव के बीच बंधुवर
गोबर लिपी रही अँगनाई
साँझ सबेरे गैया दुहती
अम्मा कभी, कभी भौजाई

और इसे
सावन-भादों के बादल ने
           कितनी बार भिगोया।

घर में मंदिर, मंदिर में घर,
संध्या, भजन आरती थे
आपस में पलता प्यार सलोना
सब विश्वास व्रती थे

READ  वायुयान | मुंशी रहमान खान

ओ भाई !
खोज-खोज कर हार गया जब
           मैं रात-दिवस रोया।

Leave a comment

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *