ग़ैर क्या जानिये क्यों मुझको बुरा कहते हैं | फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ैर क्या जानिये क्यों मुझको बुरा कहते हैं | फ़िराक़ गोरखपुरी

ग़ैर क्या जानिये क्यों मुझको बुरा कहते हैं | फ़िराक़ गोरखपुरी

ग़ैर क्या जानिये क्यों मुझको बुरा कहते हैं | फ़िराक़ गोरखपुरी

गैर क्या जानिये क्यों मुझको बुरा कहते हैं
आप कहते हैं जो ऐसा तो बजा कहते हैं

वाक़ई तेरे इस अन्दाज को क्या कहते हैं
न वफ़ा कहते हैं जिसको न ज़फ़ा कहते हैं

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हो जिन्हे शक, वो करें और खुदाओं की तलाश
हम तो इन्सान को दुनिया का ख़ुदा कहते हैं

तेरी सूरत नजर आई तेरी सूरत से अलग
हुस्न को अहल-ए-नजर हुस्ननुमाँ कहते हैं

शिकवा-ए-हिज़्र करें भी तो करें किस दिल से
हम खुद अपने को भी अपने से जुदा कहते हैं

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तेरी रूदाद-ए-सितम का है बयाँ नामुमकिन
फायदा क्या है मगर यूँ ही जरा कहते हैं

लोग जो कुछ भी कहें तेरी सितमकशी को
हम तो इन बातों को अच्छा न बुरा कहते हैं

औरों का तजुरबा जो कुछ हो मगर हम तो ‘फ़िराक’
तल्ख़ी-ए-ज़ीस्त को जीने का मज़ा कहते हैं

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