रोटी-पानी की मुश्किलें
चाट गई हैं
जिनके चेहरे का नमक
जिनकी आँखों का गड्ढा
और गहरा हुआ है
और किनारा और स्याह
जिनका न बचपने की तरह
बचपना आया
न हुए वे युवा की तरह युवा
उनसे कैसे कहूँ
कि यह अपने गणतंत्र का
स्वर्ण जयंती वर्ष है?
रोटी-पानी की मुश्किलें
चाट गई हैं
जिनके चेहरे का नमक
जिनकी आँखों का गड्ढा
और गहरा हुआ है
और किनारा और स्याह
जिनका न बचपने की तरह
बचपना आया
न हुए वे युवा की तरह युवा
उनसे कैसे कहूँ
कि यह अपने गणतंत्र का
स्वर्ण जयंती वर्ष है?