पलकों के ऊपर | प्रेमशंकर शुक्ला | हिंदी कविता
पलकों के ऊपर | प्रेमशंकर शुक्ला | हिंदी कविता

कितनी नींदों के साथ
लिपटे हैं रतजगे भी
पलकों के ऊपर

वह सपना
जो रह गया था
आँखों में उतरते-उतरते
पलकों के ऊपर
निशान हैं उसके भी
उल्टे पाँव लौटने के

READ  हिंद-महिमा

Leave a comment

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *