रिश्ते की रुबाइयाँ | प्रतिभा चौहान

रिश्ते की रुबाइयाँ | प्रतिभा चौहान

तुम्हारी धड़कनों की 
हर लफ्ज की पहली 
और आखिरी कहानी हूँ मैं,

नींद में घुले चेहरे सी 
कोई तसवीर उभर आए हर पन्ने पर 
इस तरह मुझे तुम्हारी 
जिंदगी की किताब बनने की चाहत है…

समय रेत बन कर 
मुट्ठियों से फिसल जाएगा 
पर, इस खुले आकाश में 
सितारों की आँखों में हमेशा, 
रहे हमारी ही कहानी, 
जो शुरू होकर कभी खत्म न हो 
ऐसा ख्वाब बनने की चाहत है,

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खूबसूरत परछाइयाँ यादों से बनाती हैं 
अरमानों के महल 
चमकती आँखों ने देखा है 
कोई सपना…

तुम कहते हो मैं सुनती हूँ 
तुम गुजरते हो मैं चलती हूँ 
तुम हँसते हो मैं जीती हूँ,

हमारे रिश्ते की रुबाइयों के 
संगीत की धुन 
गुनगुना रहा है सारा आसमान 
अब, 
हमारे सुकून के दरिया से 
इस समुंदर का दायरा भी कम है।

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