भाषा | प्रतिभा कटियारी
भाषा | प्रतिभा कटियारी

भाषा | प्रतिभा कटियारी

भाषा | प्रतिभा कटियारी

किसी स्कूल ने नहीं सिखाया
सूखी आँखों में मुरझा गए ख्वाबों को पढ़ पाना
नहीं सिखाया पढ़ना
बिवाइयों की भाषा में दर्ज
एक उम्र की कथा, एक पगडंडी की कहानी
किसी कॉलेज में नहीं पढ़ाया गया पढ़ना
सूखे, पपड़ाए होंठों की मुस्कुराहट को
जो उगती है लंबे घने अंधकार की यात्रा करके
नहीं बताया किसी भाषा के अध्यापक ने
कि चिड़िया लिखते ही आसमान कैसे
भर उठता है फड़फड़ाते परिंदों से
और कैसे धरती हरी हो उठती है
पेड़ लिखते ही
बहुत ढूँढ़ा विश्वविद्यालयों में उस भाषा को
जो सिखाए खड़ी फसलों के
जल के राख हो जाने के बाद
दोबारा बीज बोने की ताकत को पढ़ना
कहाँ है वो भाषा
जिसमें खिलखलाहटों में छुपे अवसाद को
पढ़ना सिखाया जाता है
नहीं मिली कोई लिपि जिसमें
‘आखिरी खत’ के ‘आखिरी’ हो जाने से पहले
‘उम्मीद’ लिखा जाता है
‘जिंदगी’ लिखा जाता है
वो लिपि जो
जिसमें लिखा जाता है कि
सब खत्म होने के बाद भी
बचा ही रहता है ‘कुछ’…

Pratibha Katiyar Stories / Poems

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हरा | प्रतिभा कटियारी

हरा | प्रतिभा कटियारी हरा | प्रतिभा कटियारी कुछ जो नहीं बीततासमूचा बीतने के बाद भीआमद की आहटें नहीं ढक पातीइंतजार का रेगिस्तानबाद भीषण बारिशों के भीबाँझ ही रह जाता हैधरती का कोई कोनाबेवजह हाथ से छूटकर टूट जाता हैचाय का प्यालासचमुच, क्लोरोफिल का होनाकाफी नहीं होता पत्तियों कोहरा रखने के लिए…

हत्यारे की आँख का आँसू और तुम्हारा चुंबन सुनो | प्रतिभा कटियारी

हत्यारे की आँख का आँसू और तुम्हारा चुंबन सुनो | प्रतिभा कटियारी हत्यारे की आँख का आँसू और तुम्हारा चुंबन सुनो | प्रतिभा कटियारी सुनो,बहुत तेज आँधियाँ हैंइतनी तेज कि अगरये जिस्म को छूकर भी गुजर जाएँतो जख्मी होना लाजिमी हैंऔर वो जिस्मों को ही नहींसमूची जिंदगियों को छूकर निकल रही हैंउन्हें निगल रही हैंना……

सौंदर्य | प्रतिभा कटियारी

सौंदर्य | प्रतिभा कटियारी जबसे समझ लिया सौंदर्य का असल रूपतबसे उतार फेंके जेवरात सारेन रहा चाव, सजने-सँवरने कान प्रशंसाओं की दरकार ही रहीनदी के आईने में देखी जो अपनी ही मुस्कानतो उलझे बालों में ही सँवर गईखेतों में काम करने वालियों सेमिलाई नजरतेज धूप को उतरने दिया जिस्म परन, कोई सनस्क्रीन भी नहींरोज साँवली…

सिर्फ तुम्हारा खयाल | प्रतिभा कटियारी

सिर्फ तुम्हारा खयाल | प्रतिभा कटियारी खिला देता है हजारों गुलाबबहा देता कल कल करती नदियाँसदियों की सूखी, बंजर जमीन परतुम्हारा खयालकोयल को कर देता है बावलाऔर वो बेमौसम गुंजानेलगती है आकाशटेरती ही जाती हैकुहू कुहू कुहू कुहूतुम्हारा खयालहथेलियों पर उगाता हैसतरंगा इंद्रधनुषकाँधे पर आ बैठते हैं तमाम मौसमताकते हैं टुकुर-टुकुरखिलखिलाती हैं मोगरे की कलियाँबेहिसाबहालाँकि…

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