प्रेम-पत्रों में रोशनी होती है और एक गहन अँधेरा भी चमकती हुई पीड़ा होती है तो पपड़ाए होंठो पर रखी मुस्कान भी अठखेलियाँ होती हैं कहीं तो उबासियाँ लेती है गहन उदासी भी सहराओं में साहिलों की तलाश होती है प्रेम पत्रों में और चाँद तारों को ठुकरा देने की चाह भी कम नहीं होती पड़ोसी की बातें खूब विस्तार से सहेली के किस्से भी पूरे प्यार से सहेली के प्रेमी का ज्योग्राफिया और उसका विश्लेषण पूरा हाँ, बस अपना ही किस्सा अधूरा… लिखी होती है देर रात बिल्लियों की रोती हुई आवाजों में लिपटी दुखद आगत की आशंका साथ ही देश के हालात की चिंता भी नई दुनिया बनाने का सपना होता है तो ख्वाब किसी की दुनिया बन जाने का भी वो जो खबर थी न अखबार में प्रेमियों की हत्या वाली उससे दहल भी गया है प्रेम-पत्र ताकीद है पढ़कर फाड़ देने की वादा एक-दूसरे का नाम भी न लेने का हिदायत अपना ख्याल रखने की और भूल जाने की उन आँखों को जिन्हें देखे जमाना हुआ… दूर देश के मौसम को टटोलते हुए खींचकर उसे ओढ़ लेने की हसरत नहीं लिखी है प्रेम-पत्र में बचपन के किस्सों में न जाने कब जुड़ गया था तुम्हारा भी हिस्सा रह गया यह जिक्र आते-आते आँखों में न जाने क्यों सीलन सी रहती है इन दिनों बड़े दिन हुए मन की मरम्मत कराए लिखते-लिखते रुक गए थे हाथ काँपते हाथों ने बस इतना लिखा था वो लगाया था न जो पौधा पिछले महीने तुम्हें लिखा था, जिसके बारे में आज फूल आया है उसमें… लिखा है प्रेम-पत्र में यह भी सुनो, आज सपने में मैंने चट्टान को रोते देखा देखा लोहे को पिघलते हुए बंदूक की मुहाने पर एक फूल रखा देखा बंजर जमीन पर अश्कों को लहलहाते देखा… लिखा है प्रेम-पत्र में कि इन दिनों कलेजा छलनी नहीं होता किसी तलवार से न जाने कैसे छूट गया लिखना कि मेरे दुख को मत छूना वर्ना कट जाएगा तुम्हारा हाथ प्रेम-पत्रों में लिखा होता है सब कुछ बस नहीं लिखा होता है प्रेम क्योंकि प्रेम लिखने से पहले एक मौन की नदी गुजरती है और बहा ले जाती है समूचा पत्र लौट आते हैं प्रेमी अपनी ही दुनिया में जुट जाते हैं कोशिश में खुद के खाँचे में फिट होने की… अधूरे ही रह जाते हैं प्रेम-पत्र अक्सर जैसे अधूरी रह जाती हैं प्रेम की दास्तानें…
हरा | प्रतिभा कटियारी हरा | प्रतिभा कटियारी कुछ जो नहीं बीततासमूचा बीतने के बाद भीआमद की आहटें नहीं ढक पातीइंतजार का रेगिस्तानबाद भीषण बारिशों के भीबाँझ ही रह जाता हैधरती का कोई कोनाबेवजह हाथ से छूटकर टूट जाता हैचाय का प्यालासचमुच, क्लोरोफिल का होनाकाफी नहीं होता पत्तियों कोहरा रखने के लिए…
हत्यारे की आँख का आँसू और तुम्हारा चुंबन सुनो | प्रतिभा कटियारी हत्यारे की आँख का आँसू और तुम्हारा चुंबन सुनो | प्रतिभा कटियारी सुनो,बहुत तेज आँधियाँ हैंइतनी तेज कि अगरये जिस्म को छूकर भी गुजर जाएँतो जख्मी होना लाजिमी हैंऔर वो जिस्मों को ही नहींसमूची जिंदगियों को छूकर निकल रही हैंउन्हें निगल रही हैंना……
सौंदर्य | प्रतिभा कटियारी जबसे समझ लिया सौंदर्य का असल रूपतबसे उतार फेंके जेवरात सारेन रहा चाव, सजने-सँवरने कान प्रशंसाओं की दरकार ही रहीनदी के आईने में देखी जो अपनी ही मुस्कानतो उलझे बालों में ही सँवर गईखेतों में काम करने वालियों सेमिलाई नजरतेज धूप को उतरने दिया जिस्म परन, कोई सनस्क्रीन भी नहींरोज साँवली…
सिर्फ तुम्हारा खयाल | प्रतिभा कटियारी खिला देता है हजारों गुलाबबहा देता कल कल करती नदियाँसदियों की सूखी, बंजर जमीन परतुम्हारा खयालकोयल को कर देता है बावलाऔर वो बेमौसम गुंजानेलगती है आकाशटेरती ही जाती हैकुहू कुहू कुहू कुहूतुम्हारा खयालहथेलियों पर उगाता हैसतरंगा इंद्रधनुषकाँधे पर आ बैठते हैं तमाम मौसमताकते हैं टुकुर-टुकुरखिलखिलाती हैं मोगरे की कलियाँबेहिसाबहालाँकि…
सुनो, मैं तुम तक पहुँचना चाहती हूँ… | प्रतिभा कटियारी सुनो, मैं तुम तक पहुँचना चाहती हूँतुम्हारे तसव्वुर को हथेली पर लेकरहर रात निकल पड़ता है मेरा मनदहलीज के उस पार…मैं तुम्हारे शहर की हवाओं मेंघुल जाना चाहती हूँ,तुम्हारे कंधे पर गिरने वाली ओसबनना चाहती हूँजिन रास्तों पर भागते-फिरते हो तुममैं उन रास्तों के सीने…
शहर लंदन | प्रतिभा कटियारी शहर लंदन | प्रतिभा कटियारी एक शहर बारिश की मुट्ठियों मेंधूप का इंतजार बचाता हैथेम्स नदी की हथेलियों पे रखता हैशहर को सींचने की ताकीदनिहायत खूबसूरत पुल कहते हैंपार मत करो मुझे, प्यार करोकला दीर्घाओं और राजमहल के बाहरलगता है कलाओं का जमघटएक बच्ची फुलाती है बड़ा सा गुब्बाराकई वहम…
शब्द भर ‘ठीक’ | प्रतिभा कटियारी शब्द भर ‘ठीक’ | प्रतिभा कटियारी ‘ठीक’ कहने से पहले जाँच लेना खुद को ठीक सेकि कहीं ‘अठीक’ साथ चिपक न जाएकहे गए ‘ठीक’ की पीठ पर’ठीक’ को सिर्फ शब्द भर बना रहने देनाउसे अपनी मुस्कुराहटों से सजाना, सँवरनाऔर जो इस ठीक से बचा हुआ सच है नउदास, तन्हा,…
वही बात | प्रतिभा कटियारी वही बात | प्रतिभा कटियारी उनके पास थीं बंदूकेंउन्हें बस कंधों की तलाश थी,उन्हें बस सीने चाहिए थेउनके हाथों में तलवारें थीं,उनके पास चक्रव्यूह थे बहुत सारेवे तलाश रहे थे मासूम अभिमन्युउनके पास थे क्रूर ठहाकेऔर वीभत्स हँसीवे तलाश रहे थे द्रौपदीउन्होंने हमें ही चुनाहमें मारने के लिएहमारे सीने परहमसे…
रोने के लिए आत्मा को निचोड़ना पड़ता है | प्रतिभा कटियारी रोने के लिए आत्मा को निचोड़ना पड़ता है | प्रतिभा कटियारी तुमने रोना भी नहीं सीखा ठीक सेऐसे उदास होकर भी कोई रोता है क्यायूँ बूँद-बूँद आँखों से बरसना भीकोई रोना हैतुम इसे दुख कहते होन, ये दुख नहींरोने के लिए आत्मा को निचोड़ना…