Contents
- 1 चलो कि अब हम गुनहगार ही सही… | प्रतिभा कटियारी
- 2 Pratibha Katiyar Stories / Poems
- 2.1 हरा | प्रतिभा कटियारी
- 2.2 हत्यारे की आँख का आँसू और तुम्हारा चुंबन सुनो | प्रतिभा कटियारी
- 2.3 सौंदर्य | प्रतिभा कटियारी
- 2.4 सिर्फ तुम्हारा खयाल | प्रतिभा कटियारी
- 2.5 सुनो, मैं तुम तक पहुँचना चाहती हूँ… | प्रतिभा कटियारी
- 2.6 शहर लंदन | प्रतिभा कटियारी
- 2.7 शब्द भर ‘ठीक’ | प्रतिभा कटियारी
- 2.8 वही बात | प्रतिभा कटियारी
- 2.9 रोने के लिए आत्मा को निचोड़ना पड़ता है | प्रतिभा कटियारी
चलो कि अब हम गुनहगार ही सही… | प्रतिभा कटियारी
चलो कि अब हम गुनहगार ही सही… | प्रतिभा कटियारी
सियासत के मायने हम क्या जानें
हम तो बस गेहूँ की बालियों
के पकने की खुशबू को ही जानते हैं
दुनिया की सबसे प्यारी खुशबू
के रूप में
क्या पता कैसा होता है जंतर-मंतर
और कैसा होता है जनतंत्र
देश दुनिया की सरहदों से
हमारा कोई वास्ता कैसे होता भला
हम तो घर की दहलीजों से ही
लिपटे हैं न जाने कब से
बस कि हमने पलकों को झुकाना
जरा कम किया
आँखों को सीधा किया
शरमा के सिमट जाने की बजाए
डटकर खड़े होना सीखा
आँचल को सर से उतार कमर में कसा
कि चलने में सुविधा हो जरा
कहीं पाँवों की जंजीर न बन जाए पायल
सो उससे पीछा छुड़ाया
न कोई तहरीर थी हमारे पास
न तकरीर कोई
हमने तो ना कहना
सीखा ही नहीं था
बस कि हर बात पे हाँ कहने
से जरा उज्र हो आया था
इसे भी गुनाह करार दिया
तुम्हारे कानून ने
चलो कि अब हम गुनहगार ही सही…