चुप्पे चोरी बदरा के पार से | प्रकाश उदय

चुप्पे चोरी बदरा के पार से | प्रकाश उदय

उड़े खाती चिरईं के पाँख 
बुड़े खाती मछरी के नाक लेब 
उड़े-बुड़े कुछुओ के पहिले 

चुप्‍पे-चोरी चारो ओरी ताक लेब 
चुप्‍पे चोरी बदरा के पार से 
सँउसे चनरमा उतार के 
माई तोर लट सझुराइब 
चुप्‍पे चोरी लिलरा में साट देब 

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भरी दुपहरी में छपाक से 
पोखरा में सुतब सुतार से 
माई जोही, जब ना भेंटाइब 
रोई, ना सहाई जो त खाँस देब 

आजी बाती सुरुज के जोती 
सखी बाती पाकल पाकल जोन्‍ही 
भइया खाती रामजी के बकरी – 
चराइब, दू गो चुप्‍पे चोरी हाँक लेब 

बाबू चाचा मारे जइहें मछरी 
हमरा के छोड़िहें जो घरहीं 
जले-जले जाल में समाइब 
मछरी भगाइब, खेल नास देब 

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दीदी के देवरवा ह बहसी 
कहला प मानी नाहीं बिहँसी 
भउजी के भाई हवे सिधवा 
बताइब, जो चिहाई त चिहाय देब