जल की अपराधी | नीलेश रघुवंशी
जल की अपराधी | नीलेश रघुवंशी

जल की अपराधी | नीलेश रघुवंशी

जल की अपराधी | नीलेश रघुवंशी

पानी बहुत कम है अब जीवन में!
तिस पर
हर दिन जल को पाँव से छूती हूँ
हर दिन पानी से अपनी प्यास बुझाती हूँ
हर दिन पानी को बिकते देखती हूँ
हर दिन पानी को फिंकते देखती हूँ
मैं देख देखकर अपराध करती हूँ
जल के बिना कल की सोच
सिहर जाती हूँ और
चार बाल्टी पानी से स्नान करती हूँ!
मैं जल की अपराधी हूँ
जिसकी कोई सजा नहीं
कानून की किसी धारा में
कचहरी और अदालतों के नलों में भी
नहीं है पानी…
जितना ज्यादा झुकाती हूँ नल को
कम होती जाती है उतनी ही उसकी धार
क्षमा करना औेर प्रायश्चित करना
स्वभाव में नहीं मेरे
इसीलिए
पानी दूर बहुत दूर होता जा रहा है मुझसे…

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