कभी वसंत नहीं आता | नीरज कुमार नीर
कभी वसंत नहीं आता | नीरज कुमार नीर
शहर की गंदी बस्तियों में
कभी वसंत नहीं आता
नलों की लंबी लाइनों में
बजबजाती नालियों में,
सर टकराते छप्परों में
औरतों की गालियों में,
रोज रोज की हुज्जतों का
कभी अंत नहीं आता
झूठ और पाखंड की
खूब महफिल सजती है
पंडित और मौलाना की
मन मर्जी चलती है
असमय होती मौतों का पर
कभी अंत नहीं आता
शहर की गंदी बस्तियों में
कभी वसंत नहीं आता
कुतिया के पिल्लों के संग
रधिया की बच्ची पलती है
भूख की आग में न जाने
कितनी उम्मीदें जलती है
अपूर्ण रहे उम्मीदों का
कभी भी अंत नहीं आता
शहर की गंदी बस्तियों में
कभी वसंत नहीं आता
शिशुओं के नाजुक कंधों पर
बस्ते की जगह भार है
उसकी कमाई से चलता
उसका बीमार परिवार है
दुख है उनकी जीवन नियति
दुख का अंत नहीं आता
शहर की गंदी बस्तियों में
कभी भी वसंत नहीं आता