कल, मौत के बारे सोचते हुए | निकोलाई जबोलोत्स्की

कल, मौत के बारे सोचते हुए | निकोलाई जबोलोत्स्की

कल, मौत के बारे सोचते हुए
अचानक निष्‍ठुर हो गया मेरा हृदय।
दिन कुछ उदासी भरा था। युगों पुरानी प्रकृति
जंगल के अंधकार में से देख रही थी मेरी तरफ।
बिछोह का अहसनीय दुख चीर रहा था मेरा हृदय

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और तभी सुनाई दिये मुझे
साँझ की घास के गीत, पानी का वार्तालाप
और पत्‍थ्‍रों की मृत चीखें।
और मैं, जीवित, सैर कर रहा था खेतों पर
बिना डरे मैंने प्रवेश किया जंगल में,
मृतकों के विचार पारदर्शी मीनारों की तरह
चारों ओर से उठ रहे थे आकाश तक।
पत्तियों के ऊपर से सुनाई दी पूश्किन की आवाज।
खेलेब्निकोव के पक्षी गा रहे थे नदी के पास।
एक पत्‍थर से मुलाकात हुई। खड़ा था वह एक ही जगह
उस पर दिखाई देने लगा मुझे स्‍कोवोरोदा का चेहरा।

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सारे वजूदों और सब लोगों ने
सँभाल कर रखा था वह चिरंतन जीवन।
और मैं पुत्र नहीं था प्रकृति का
बल्कि उसका विचार था, विवेक था अस्थिर-सा।