कभी जब याद आ जाते | नामवर सिंह

कभी जब याद आ जाते | नामवर सिंह

नयन को घेर लेते घन,
स्वयं में रह न पाता मन
लहर से मूक अधरों पर
व्यथा बनती मधुर सिहरन
न दुःख मिलता न सुख मिलता
न जाने प्राण क्या पाते!

तुम्हारा प्यार बन सावन,
बरसता याद के रसकन
कि पाकर मोतियों का धन
उमड़ पड़ते नयन निर्धन
विरह की घाटियों में भी
मिलन के मेघ मँड़राते।

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झुका-सा प्राण का अंबर,
स्वयं ही सिंधु बन-बनकर
ह्रदय की रिक्तता भरता
उठा शत कल्पना जलधर।
ह्रदय-सर रिक्त रह जाता
नयन-घट किंतु भर आते।
कभी जब याद आ जाते।