रंगीन शीशा | नरेंद्र जैन

रंगीन शीशा | नरेंद्र जैन

वहाँ से गुजरते-गुजरते 
मैं एक घर के सामने ठिठक गया 
इस घर में बहुत-सी खिड़कियाँ थीं 
और उन पर जड़े थे शीशे 
हर शीशा अलग-अलग रंग का था 
शीशों के पार 
चहलकदमी करता वह शख्स 
लगातार चीख-चिल्ला रहा था

मैंने सड़क पर पड़े 
एक पत्थर को उठाया 
पत्थर नुकीला था और उसकी बनावट 
अच्छी लगी मुझे 
सहसा उछाल दिया मैंने एक पत्थर 
बंद खिड़कियों की तरफ 
शीशों को तोड़ता पत्थर 
जा गिरा घर के भीतर

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उस शख्स ने खोला दरवाजा और वह 
बाहर आया 
उसने आमंत्रित किया मुझे घर के भीतर 
मैंने देखा कि 
मेरे उस घर में प्रवेश होने के दौरान 
जड़ दिया गया था उस खिड़की पर 
एक रंगीन शीशा 
और वह नुकीला पत्थर 
एक शिल्प की शक्ल में 
सजा दिया गया था आबनूसी मेज पर

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