भाषा की लहरें | त्रिलोचन
भाषा की लहरें | त्रिलोचन

भाषाओं के अगम समुद्रों का अवगाहन
मैंने किया। मुझे मानव-जीवन की माया
सदा मुग्ध करती है, अहोरात्र आवाहन
           सुन सुनकर धाया-धूपा, मन में भर लाया
           ध्यान एक से एक अनोखे। सब कुछ पाया
           शब्दों में, देखा सब कुछ ध्वनि-रूप हो गया।
मेघों ने आकाश घेरकर जी भर गाया।
मुद्रा, चेष्टा, भाव, वेग, तत्काल खो गया,
जीवन की शैय्या पर आकर मरण सो गया।
सब कुछ, सब कुछ, सब कुछ, सब कुछ, सब कुछ भाषा।
            भाषा की अंगुलि से मानव हृदय टो गया
            कवि मानव का, जगा नया नूतन अभिलाषा।

READ  आम के बाग़ | आलोक धन्वा

भाषा की लहरों में जीवन की हलचल है,
ध्वनि में क्रिया भरी है और क्रिया में बल है

Leave a comment

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *